जिंदगी जब भी तुझको पुकारा है
तूने हर बार आने से नकारा है।
ऐसी क्या ख़ता हो गई हैै हमसे
यूं जुल्म ढाना तुमको गंवारा है।
बनता है कोई तिनके का सहारा
गरजते तूफां सा तूने ललकारा है
काँचता सा है बीते लम्हों का सच
जो बच गया है हिस्सा हमारा है।
रात चाँदनी का साया जो छाता है
याद वही शख्स आता दोबारा है।
~~ अश्विनी बग्गा ~~
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