इतनी बेपनाह… चाहत क्यों करे
लगाए दिल मोहब्बत क्यों करे।
दुश्मनी है क्या…. मैं जानता नहीं
शक्लो सूरत से नफरत क्यों करे।
न मैं राहे चराग़…. न ही आफताब
मुझसे रौशनी की हसरत क्यों करे।
आदतों में अब… बचपन रहा नहीं
शोख चंचल सी शरारत क्यों करे।
लहू के रंग में छुपा. है क्या अदब
क्यों झुकाएँ सर ज़हमत क्यों करे।
~~ अश्विनी बग्गा ~~
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2 Comments
Aslam · October 29, 2015 at 10:24 am
Kya baat he…
AuthorAshwini · October 30, 2015 at 9:26 am
Thank you Aslam Bhaai Jaan