इतना मिल जाता है लेकिन, कोई कमी सी खलती है कहीं गुज़र भर हो रही, तो कहीं ज़िदंगी ही चलती है।

समझो बड़ी है अहमियत, इन छोटे-छोटे रिश्तों की सब धागे टूट जाते हैं तो, किस्मत हाथ मलती है।

वक्त रहते अपने घर में, थोड़ा वक्त बिता लेते बारिशों में छत से धारा, दरिया सी फिसलती है।

हो बुढ़ापे की लाठी, ये बस उसका ख्वाब रहा आँखों में आँसू लेकर, हर अरमान मसलती है।

सबसे उम्दा सबसे रोशन , माँगे सारे ताजमहल हाथ धरे सब देख रहे हैं, बस्ती कैसे जलती है।

 

~~ अश्विनी बग्गा ~~

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4 Comments

praveen gola · October 27, 2015 at 9:24 am

Very nice

Aslam · October 27, 2015 at 3:01 pm

Wah, Ashwini wah. Bahut achha likha he. Rishton ki bahut ahmiyat he….

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